Tuesday, October 17, 2017

दीपावली विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय को दर्शाते हैं।

दीवाली या दीपावली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।

माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। 

दिवाली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। 

भारत में प्राचीन काल से दीवाली को हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। दीवाली का पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में दर्ज़ की गयी है।

दीपावली नेपाल और भारत में सबसे सुखद छुट्टियों में से एक है। लोग अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।

दीपावली विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय को दर्शाते हैं।

प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं। कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है। भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।

सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी खरीददारी का समय है। इस त्योहार पर खर्च और खरीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की खरीद का सबसे बड़ा सीजन है।

Thursday, June 1, 2017

राजकुमार भोज

उज्जैन मे एक राजा रहता था। उसका नाम सिन्धुल था। उसका एक ही लड़का था। उसका नाम भोज था। भोज बड़ा होनहार और सुशील लड़का था। राजा उसको बहुत प्यार करता था। परन्तु जब भोज पाँच वर्ष का था , तभी उसके पिता स्वर्ग सिधार गये। भोज अभी बहुत छोटा था। राज – काज नहीं चला सकता था ; इसलिये उसका चाचा मुंज राज – काज देखने लगा।  

     राज्य का लोभ सबको होता है। राज्य करते – करते मुंज को भी राज्य के लोभ ने सताया। वह सोचने लगा -- भोज बड़ा अक़्लमंद है। बड़ा होनहार है | बड़ा होकर अपना राज्य छीन लेगा। तब मुझे उसके अधीन होकर रहना पड़ेगा।
       यह नहीं हो सकता। मैं उसका नौकर बनकर नहीं रह सकता | इसलिये उसको किसी न किसी उपाय से मार कर खुद राजा बन जाना चाहिये।
         लोभी आदमी बड़े से बड़ा पाप भी कर सकता है। उसके दिल में दया नहीं होती। औरंगजेब ने राज्य के लोभ मे पड़कर अपने तीन भाइयों को मार डाला। अपने बाप को भी कैद में दल दिया। मुंज भी अपने भतीजे भोज को मरने का उपाय सोचने लगा।
    एक दिन उसने अपने मंत्री को बुलाकर कहा मंत्री जी , देखिये , यह लड़का बड़ा दुष्ट है। आप किसी तरह इसका काम करवा दीजिये , नहीं तो यह मुझे बहुत दु:ख देगा।
     मंत्री मुंज के मन की बात समझ गया। उसने हाथ जोड़कर राजा से कहा – महाराज , आप बड़े हैं।  भोज अभी नादान बच्चा है। उस पर आप का गुस्सा करना ठीक नहीं। उसको मरने से आपको बड़ा पाप लगेगा। आप ऐसी बात मन में न लाइये।
     मंत्री की बात सुनकर राजा खफा हो गया। वह आंखे लाल करके बोला --- यह मेरा हुक्म है, तुम्हें मानना होगा। मानती ने राजा को समझाने की बहुत कोशिश की , लेकिन राजा ने हठ नहीं छोड़ा। तब राजा की आज्ञा पालने के लिये वह लाचार हुआ।  
     दूसरे दिन मंत्री भोज को रथ पर बिठाकर जंगल में ले गया। लेकिन मंत्री बड़ा रहम दिल था।  भोज को मारने को उसका हाथ न उठा। उसने मुंज की ईश्र्या का हाल भोज ने कहा। भोज ने कहा – मैं मरने से नहीं डरता। आप मुझे मार डालिये। अच्छी बात है , मेरे चाचाजी राज करेंगे। इसमे दु;ख करने की कोई बात नहीं है। लेकिन मैं एक चिट्ठी देता हूँ। आप उसे मेरे चाचा को दे दीजियेगा। यह कहकर भोज ने एक चिट्ठी लिखकर मंत्री के हाथ में दे दी।  
  भोज की हिम्मत देखकर मंत्री दंग रह गया। उसने कहा ---राजकुमार , मैं आपको मार नही सकता।  मैंने आपके पिता का नमक खाया है। मैं यह पाप नहीं कर सकता। आप मेरे घर चलिये और आराम से वहाँ रहिये।  
   मंत्री ने राजकुमार को अपने घर लाकर छिपा दिया।
    दूसरे दिन मंत्री मुंज के यहाँ हाजिर हुआ। मुंज ने पूछा ---कहो मेरा हुक्म बजा लाये ,मंत्री ने जबाब दिया ---हाँ , हुजूर। लेकिन भोज ने मरते वक़्त आपके नाम से एक खत दिया है। मुंज ने लिफाफा खोलकर पढ़ा। उसमे लिखा था ----
      ‘’चाचाजी, इस पृथ्वी पर बहुत से बड़े राजा हुए। उनमें से कोई इसको अपने साथ नहीं ले गया। मालूम होता है , आप इसको अपने साथ ले जायंगे।
 पत्र पढकर मुंज की आंखे खुल गयी। अब तो वह अपनी करनी पर पछताने लगा। हाय मैंने ऐसे बुद्धिमान भतीजे को मरवा डाला। मैं कैसा पापी हूँ ----धीरे –धीरे उसका पछतावा यहाँ तक बढ़ा कि वह अपने प्राण देने पीआर तैयार हो गया। मंत्री ने देखा कि राजा सचमुच बहुत सदमा पहुंचा है। तब उसने हाथ जोड़कर कहा – ‘ महाराज मेरा कसूर माफ कीजिये। भीज मरा नहीं है। वह जीता है। मैंने उसे अपने घर में छिपा रखा था। फिर उसने मुंज के सामने भोज को लाकर खड़ा कर दिया।  
     भोज को देखकर मुंज को बेहद खुशी हुई। उसने सिर नीचे करके भोज से माफी मांगी। मंत्री को भी भोज के प्राण बचाने के लिये उसने बहुत धन्यवाद दिया। अब राज्य से उसका मन उदास हो गया। उसने भोज को गध्दी पर बिठाया। फिर सब से बिदा लेकर अपनी स्त्री के साथ जंगल में तप करने चला गया।